जो निकले थे क्रांति लाने
उनकी पैंटों के ब्रांड बदल गए
सुधारने निकले थे जो दुनिया
उनके घर और मकान बदल गए
कल उतरेंगे सोफे उनके घरो में
आज तो शहर के शमशान बदल गए।
शैलेन्द्र ऋषि
मंगलवार, मार्च 23, 2010
सोमवार, मार्च 22, 2010
जूता
अज्ञात दैनिक यात्रा के बाद मैंने कुछ देर पहले ही उसे पृथक किया
मैं पलंग पर ठीक उसी तरह से था
जैसे वो पलंग के नीचे पड़ा था
सहसा मेरी नज़र उस पर पड़ी
रोष में घूरता वो मुझे प्रतीत हुआ
मेरे चेहरे और उसके शरीर पर
धूल का स्तर समान था
चेहरा तो साफ़ हो चुका था
पर उसे अगली यात्रा से पूर्व
ही साफ होना था
इसी रोष में , स्व की उपेछा में
स्थिर वो घूरे जा रहा था
अनेक सार्थक और निरर्थक
यात्राओ में मेरे संग
मुझे सुविधा और खुद का
क्षरण करते हुए परम परोपकारी
वो इतना अधिकार तो रखता ही है
विभिन्न अवसरों पर मैं उसकी
तो वो मेरी पहचान था
मेरे लक्ष्य को ही अपना लक्ष्य मान
सव्गंत्व्य से वह अंजान था
समय -समय पर अपने सुधार की मांग लिए
अभी भी वही समर्पण दिखलाता है
मैं अपना भार उस पर रख और वो
दूसरी पीढ़ी पर , मेरे जीवन से विदा हो जाता है।
शैलेन्द्र ऋषि
मैं पलंग पर ठीक उसी तरह से था
जैसे वो पलंग के नीचे पड़ा था
सहसा मेरी नज़र उस पर पड़ी
रोष में घूरता वो मुझे प्रतीत हुआ
मेरे चेहरे और उसके शरीर पर
धूल का स्तर समान था
चेहरा तो साफ़ हो चुका था
पर उसे अगली यात्रा से पूर्व
ही साफ होना था
इसी रोष में , स्व की उपेछा में
स्थिर वो घूरे जा रहा था
अनेक सार्थक और निरर्थक
यात्राओ में मेरे संग
मुझे सुविधा और खुद का
क्षरण करते हुए परम परोपकारी
वो इतना अधिकार तो रखता ही है
विभिन्न अवसरों पर मैं उसकी
तो वो मेरी पहचान था
मेरे लक्ष्य को ही अपना लक्ष्य मान
सव्गंत्व्य से वह अंजान था
समय -समय पर अपने सुधार की मांग लिए
अभी भी वही समर्पण दिखलाता है
मैं अपना भार उस पर रख और वो
दूसरी पीढ़ी पर , मेरे जीवन से विदा हो जाता है।
शैलेन्द्र ऋषि
दीवार के पार
अक्सर तन्हाइयो में जज्बातों को उकेरने का दिल करता है
चमकती रातो में सितारों पर शहर बसाने का दिल करता है
गुस्सा , प्यार ,नफरत , बटवारा, बहुत हो चुका इस जहां में
किसी नए जहां के भावो पर लिखने को दिल करता है।
आशियाने उजड़ने की बात क्यों किसी क्यों बताये ?
ये तो रोज की बाते हो चली है
अब गैरों को नेस्तनाबूद करके भी खुशियों के गुलस्ते सजाने वालो
के संग घर बसाने को दिल करता है
महफूज करे कब तक अपने को दूसरों से ?
अब तो अपने घर को ही तोड़ने का दिल करता है
क्या करेंगे फरेब का चेहरा लिए ?
सच्चे गुनहगार की शक्ल दिखाने को दिल करता है
अगर ये चंद राहत की चीजे ही तय करती है आयाम जिन्दगी का
तो कसम खुदा तेरी इन चीजो को दुनिया में बिखेरने का दिल करता है
अगर यहाँ न बशर हो सका तो क्या चाँद पर गुजर हो जायेगा ?
आशियाने बदलकर पाकियत समेटने वालो को ख़त्म करने को दिल करता है
सियासत , शख्शियत , रिवाज को कब तक तब्बजो देते रहेंगे
अब हीर राँझा , रोमियो जूलियट ,लैला मझनु के हाथो सल्तनत
सौपने को दिल चाहता है।
क्यों जुदा हो रहे है हमराही अपने सायों से आज?
सभी मजहब के आदमियों को अपने आगोश में
समेटने वाली माटी बनने का दिल करता है
शैलेन्द्र ऋषि
चमकती रातो में सितारों पर शहर बसाने का दिल करता है
गुस्सा , प्यार ,नफरत , बटवारा, बहुत हो चुका इस जहां में
किसी नए जहां के भावो पर लिखने को दिल करता है।
आशियाने उजड़ने की बात क्यों किसी क्यों बताये ?
ये तो रोज की बाते हो चली है
अब गैरों को नेस्तनाबूद करके भी खुशियों के गुलस्ते सजाने वालो
के संग घर बसाने को दिल करता है
महफूज करे कब तक अपने को दूसरों से ?
अब तो अपने घर को ही तोड़ने का दिल करता है
क्या करेंगे फरेब का चेहरा लिए ?
सच्चे गुनहगार की शक्ल दिखाने को दिल करता है
अगर ये चंद राहत की चीजे ही तय करती है आयाम जिन्दगी का
तो कसम खुदा तेरी इन चीजो को दुनिया में बिखेरने का दिल करता है
अगर यहाँ न बशर हो सका तो क्या चाँद पर गुजर हो जायेगा ?
आशियाने बदलकर पाकियत समेटने वालो को ख़त्म करने को दिल करता है
सियासत , शख्शियत , रिवाज को कब तक तब्बजो देते रहेंगे
अब हीर राँझा , रोमियो जूलियट ,लैला मझनु के हाथो सल्तनत
सौपने को दिल चाहता है।
क्यों जुदा हो रहे है हमराही अपने सायों से आज?
सभी मजहब के आदमियों को अपने आगोश में
समेटने वाली माटी बनने का दिल करता है
शैलेन्द्र ऋषि
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