मंगलवार, मार्च 23, 2010
आज के क्रांतिकारी
जो निकले थे क्रांति लाने
उनकी पैंटों के ब्रांड बदल गए
सुधारने निकले थे जो दुनिया
उनके घर और मकान बदल गए
कल उतरेंगे सोफे उनके घरो में
आज तो शहर के शमशान बदल गए।
शैलेन्द्र ऋषि
1 टिप्पणी:
Devashish Mishra
16 अप्रैल 2010 को 10:00 am बजे
aap ki kavita choti lekin dam ek navel ka rakhti hai
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shailendra rishi
aap ki kavita choti lekin dam ek navel ka rakhti hai
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