कटहल के दो पेड़ ,एक दूसरे के ठीक सामने
लम्बाई में लगभग समान, पर विचारो के स्तर या उम्र के अंतराल से
थोड़े ज्यादा तो थोड़े कम फैले हुए ,दिखते मुझे मेरे घर के ठीक पीछे
मैं देखता उन्हें उस उम्र में ,जिस उम्र के उसमे फल लगते
तेज हवाओ में एक दूसरे को सहजता से गले लगाते
कई बार झूलों के लिए काम आते वो दोनों
अपने आगोश में आने वाली हर छोटी बड़ी झाड़ियो को
पोशते ठीक वैसे जैसे अपने फल से मुझे
वो आशियाना थे अनेक छोटे और छोटे से थोडा बड़े कीड़े - मकोडो के
और अनेक उन भावनाओ के जिनका आश्रय केवल वे ही थे
वे अपनी देखभाल खुद करते ,अपने संतानों की जरूरतों में व्यस्त
अभिभावकों की तरह
उनके पत्ते रात में एक दूसरे से बताते ,दिन भर में घटी हज़ार छोटी मोटी बातो को
स्थितियों से विवश वो परिधि जिसमे वो लम्बे समय से जीवन बिताते आये
उनके अंत का कारण बनी
उन्होंने हज़ार प्रहार सहे अपने शरीर पर
पर वो मरे शायद पूर्ण समर्पण के लिए
सोचता हूँ आज फिर से लगाओं कटहल के दो पेड़
एक दूसरे के ठीक सामने ,हमउम्र जिसमे फैलाव भी समान हो
पर अपनी उम्र और उनके फलो की उम्र कैसे समान करूँ ?
और कैसे उन्हें एक साथ इतना बड़ा कर दूँ की मैं
झूला झूल सकूँ अभी उनकी डालियों पर
मैं बदल पाता अगर उन स्थितियों को तो आज वो फिर
खड़े होते एक दूसरे के ठीक सामने , लम्बाई में लगभग समान
.
शैलेन्द्र ऋषि
मंगलवार, मई 04, 2010
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