शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010
पहचान
तुम जर्रे को पहचानो जर्रा तुमको पहचाने
शायद मंजिल की पहचान हो जाए
यूँ ही मदमस्त हवाओ के साथ बढ़ते चलो
शायद नए इतिहास का दीदार हो जाये.
शैलेन्द्र ऋषि
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