मैं उससे मिला ,अपने व्यस्ततम दिनों में
वह व्यक्ति था, सामाजिक परिभाषा से
वह पागल था, अपने कार्य व्यवहार से
वह दार्शनिक था , अपने स्वतंत्र विचारो से
और शायद वह देवदूत था
अपने कार्य के पीछे की निर्दोष भावना से
मैं उससे मिला जब मैं विचारो और भानु
की उष्णता से युक्त था
और वो अपने ही ब्रह्माण्ड में टहलता ,जीवन
के झंझटो से मुक्त था
उसने शायद जिंदगी में गालिया ही कमाई थी
तभी तो इन्हें दे वो सामान की मांग करता
मैं भी अन्य संभ्रांतो की भांति उसकी
बातो पर हँस लेता
मैं उससे मिला पर शायद मैं उससे नहीं मिला
क्यों की मैं उसके आतंरिक परिचय से अनभिज्ञ था
वह स्वयं की सत्ता , परिवार , समाज, पद ,प्रतिष्ठा ,
का परिचय दे भी कैसे ?
वो खुद की सृष्टि का विधाता और ग्रंथो का सर्वज्ञ था
मैं उससे मिला जब मेरी आँखे उससे मिली
अपने क्रियाकलापों से मानो शिकायत बता रहा हो
पर शायद हम जैसो की वैचारिक परतंत्रता पर
कभी जोर से ,कभी धीरे
कभी हँसते , कभी रोते , कभी पैर फेकते
तो कभी अपने मलिन कपडे को
मुंह में दबाये , अपना व्यंग जाता रहा हो .
मैं उससे मिला और मैंने उसे जाते देखा
वो अभी भी अपनी सृष्टि में मस्त था
पर हर ब्रह्माण्ड में शायद भूख अहम् है
इसलिए कमजोरी से पस्त था
उसके लिए हर चेहरे अजनबी है
तभी व्यवहार में उसके समानता थी
फिर भी सभी अजनबियों के खोखले
व्यवहार ,शब्द , प्रतिक्रिया ,को वो
गहराई से पहचानता है .
शैलेन्द्र ऋषि
शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010
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