मंगलवार, मई 04, 2010

मेरी दादी

मेरी अभिलाषा है मैं लिखूं उसके बारे में 
जिसके लिए हजारों विशेषण लिखने के बाद भी 
मैं उसके बारे में ठीक ठीक न बता सकूँ 
मैं तो केवल उसके बारे में कलम से लिख सकता हूँ 
पर उसने मेरी जिंदगी लिखी अपने अथक ,क्षमता से परे 
रक्त को पानी बनाते ,उसके हाड -मांस को गलाते 
हजारो कभी पूरे तो कभी अधूरे प्रयासों से 
हजारो माँ के व्यक्तित्व को अकेले अपने अन्दर समेटे 
वो मांगती रही बड़ी- बड़ी दुआए  मेरी छोटी छोटी कठिनाइयों पर 
वो मुझे कहानिया सुनाती ,मुझे छोटी बड़ी सलाह देती 
मै सुनता कभी उन्हें बुझे तो कभी पूरे मन से 
अपनी हज़ार जरूरतों को दफ़न कर ,वो सिलवाती मेरे कपडे हर त्योहारों पर 
वो मुझे सहलाती पुचकारती अपनी गोदी में बैठाती 
मेरे माथे को चूमती ,उसका इन्ही बातो से बहेलता मन 
मेरे बचपन से लेकर आज तक उसका व्यवहार एक जैसा है 
जबकि मैं बदला कई बार उसकी आशाओं पर 
उसको हमेशा याद रहती उन चीजो की जिसकी मुझे जरुरत थी 
वो देती मुझे मिठाईया ,फल और अनेक ऐसी चीजे जो आती उसके हिस्से थी
वो समर्पित थी जीवन में दूसरों की कठिनाइयों  को हल करने में 
पर अपने दुःख से रखती सबको अनजान थी 
वो रोई , कई दिनों तक उदास रही अकेली रही 
जब मैं व्यस्त रहा खुद में या दूर रहा उसकी नज़रो से 
मैं याद करता दिन भर भगवान को पर सपनो में तो केवल वो ही आती 
मैं समझ गया वो भगवान है मेरी तभी तो सपनो में भी दुलराती .

शैलेन्द्र ऋषि  

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