बुधवार, जनवरी 26, 2011

उसकी धूप

कई दिनों तक कुहरे से द्वन्द करके
निकली ये धूप
कैसे बख्त बन जाती है उसकी
जिसके कीचड़ से भीगे किनारे वाली
शाल, टायरो की आग को तापती सरसों सी आँखे
इसी धूप का इंतजार करती है
इस दिलअफरोज धूप में कान से  ऊपर 
बार बार छूने  से गन्दी हुई टोपी
भी सुस्ताने की बाँट जोहती है 
परत दर परत सीने तक जाती मौत को 
रोकने वाली उसकी जूट की कबा
आज सारे पहर रस्सी पर टंगने की आश लगाती है 
उसने अभी तो देखा है इस धूप को 
अपने दरवाजे में हो चले बड़े बड़े सूराखो से 
पर दरवाजे तो थे ही नहीं 
शाल से बने उसके शरीर  के ठीक ऊपर 
और उस भीगे किनारे तक बने घर की 
खिडकियों में उसने पलक के बालो पे 
धूप को पड़ते देखा 
उसके घर का ठिकाना रोज बदलता है 
पर हर बार किसी बड़ी बेमालिक हक वाली छत 
के नीचे ही उसका ठिकाना होता 
अपनी गुमनान जिंदगी में भी 
वो क्रियाशील है सबसे ज्यादा 
कभी कचड़े बिनना , कभी रिक्शे चलाना ,कभी ऐसी दूकान खोलना 
जहां लोग समान खरीदते ही नहीं 
यही फितरत में है उसके 
कुछ दिनों से सुस्त पड़ी उसकी यही फितरत 
शायद आज इस धूप से फिर लौटे 
पर वो जो कल तक जीवित था 
इस धूप को देख के बंद की अपनी आँखे जाने कब खोले ?
ये धूप सिर्फ उसकी थी  , सिर्फ उसी की
पूरी ठंडी वो सिर्फ इसी के लिए तो लड़ा था 
फिर इस ठण्ड से इतना ठंडा  हो गया 
की ये ठण्ड भी उसे गर्म लगती 
फिर ये धूप तो उसे जला  ही देती 
तभी आज क्षण भर उसे छूने के बाद 
वो फिर जा रही उसे साथ लिए 
द्वन्द करने फिर कुहरे से . 

शैलेन्द्र ऋषि    

फफूंदी

तुम बढे हो जिसे भूल
वो फिर आगे मिल जाएँगी
ये फफूंदीया है जिंदगी की
जहां लगी वहाँ सडायेंगी
है पुकारती लाखो चीखे जिसे सन्नाटो में
तुम उन्हें अपनी खुशियों में सुनोगे
उजाले भी अंधेरे के आगोश में होंगे
तुम कहाँ? कैसे? किसके सामने चीखोगे ?
न भीष्म मिलेंगे न द्रोंण ना भीम का साथ होगा  
फफूंदीया लग गयी दिलो में तो
हाथ मिलाने को हाथ ना होगा
ये चेहरा भी तुम्हारी पहचान नहीं होगा
बिलबिलाती दुश्बारियो में
अभी बढ़ के रोक लो फफूंदी
बढती तुम्हारे आँगन की क्यारियों में .

शैलेन्द्र ऋषि

मंगलवार, जनवरी 25, 2011

चाँद का साथी

जैसे ही चाँद की दस्तक  हुई
उसका साथ निभाने आया वो तारा
चाँद  से थोड़ी ही दूर दिखता
थोडा महत्वहीन इरादों का नेक  वो तारा
लगातार चलने वाली रातो में
अपनी दो चार बातों से चांद का दिल बहला देने वाला  वो तारा
कुछ मामलो में पूरा तो कुछ में अधूरा
चाँद की आदतों को जानने वाला  वो तारा
आसमा में और तारो के आ जाने पर
चाँद को दूसरो में रमा देखता वो तारा
फिर भी हर रोज चाँद की तन्हाईयो में
कुछ उससे जुडी तो कुछ दूसरो से जुडी
हँसाने , रुलाने , सिखाने , वाली बातें करता वो तारा
अपने ही जैसे हज़ार मित्रों में
कुछ करीब कुछ दूर  कुछ दूर से थोडा दूर
चांद की मुस्कराहट  पर तन्हाई में खुश
मुस्कान बिखेरता वो तारा
चाँद के कामो को पूरा करने में
खुद को व्यस्त रखता वो तारा
चाँद के बिना भी आसमा में दिखता
चाँद की इच्छा पूरी करने उसके इंतजार में
अपनी हज़ार कोश फैलती चमक में
अपने आसुओ को छिपाता
वो अकेला तारा , चाँद का साथी वो तारा .

शैलेन्द्र शर्मा ऋषि
 
     












 



एक का सिक्का

खौलते तेल में पड़ी मैदे की पहली बूंद से ही
अपने एक के सिक्के के सार्थक होने  का प्रमाण मिला
कडाही के तल में दिखते अपने पूरे चेहरे में
उस समय की सबसे  बड़ी खुशी का अहसास मिला
वो एक का सिक्का
जो मेरे जैसे बहुतो  को खुशिया देने वाला था
कई बार बड़े बड़े विवादों का कारण भी बन जाता था
उसे मंदिर में चढ़ाकर हर कोई मुराद पूरी करने को कह जाता था
पर मैं तो उसकी जलेबिया खाकर फिर उसका इंतजार करता
हर उसे पाने को अलग अलग कारण बताने होते  थे
सिर्फ उसे ही बचा लेने पर मंडियों में लोग गर्व महसूस करते
मैं अकेला ही नहीं मेरे सारे दोस्त उसे पाने को घर में रोते थे
सिर्फ उसके ही जुड़ जाने से ढेरो पैसे सगुन बन जाया करते
आज मेरे और मेरे जैसे बहुतो के लिए वो भले ही महत्व हीन  हो
फिर भी कई आँखे अभी भी उसी के लिए
तरस रही है जिससे वो भी
देख सके खौलते तेल की कडाही में
अपनी सबसे बड़ी खुशी पाने की आश वाला पूरा चेहरा

शैलेन्द्र ऋषि  







 






बुधवार, नवंबर 03, 2010

Today

Today I am sad because I have not that shade



A shade which was with me when I was embryo


A shade that protect me from all evil & evildoer


When I have no sense.


A shade that care me when I started crawling .


And remember my hunger whenever I forget .






.


Today I am sad because I have not that feel .


When I heard a single loud clap in ground .


Although I got last position in the race.


A Feel that feel myself


When everyone go against me in the world.


A feel for that I am most great.






Today I am sad because I have not that power


That force and encourage me


When I first time fell down


A power that stop me to go wrong way.


And make me capable to find out


What is good and bad for me.






Today I am sad because I am fool


Who think her way to taught


Her rude nature .


While she making myself strong


To face all thunder of world.






Today I am sad and I think I will always sad.


Because she has started to think


That I am mature now.


And I have no need to her .


Because I have started to give suggestion her.










( SHAILENDRA RISHI )



O LIGHT! MY LIGHT

O LIGHT! MY LIGHT

WHAT A TREMENDOUS THING YOU ARE

YOU ARE GREAT RECOGNISER

WHEN YOU ARE OUTSIDE MY BODY.

YOU BRING MY THOUGHTS UP

WHEN YOU ARE INSIDE MY BODY.

MANY TIMES YOU ARE A SOCIAL PROTECTOR/REFORMER

WHEN YOU COME FROM THE POLE OF ROADSIDE.

O LIGHT! MY LIGHT

YOU TOO PART OF SPRITUAL THINGS.

BUT YOU NEVER THINK ABOUT RELIGLION

CAST, ECONOMIC LEVEL & QUALITY.

EVERYONE FEEL YOU SIMILERLY

ALL PARTS OF WORLD.

O LIGHT! MY LIGHT

YOU COME FROM THE HOLE OF

A POORMAN'S WALL

YOU TOO COME FROM THE BIGWINDOW

OF A RICH MAN HOUSE

HOW SIMPLE, HOW DIFFRENT, HOW WONDERFUL

YOU PERFORM LIKE A GOD.

O LIGHT! MY LIGHT

MANY TIMES I SEE YOU IN PICTURE

BEHIND THE GOD

BUT I THINK YOUR CHARM, THINKING,

AND ACT IS BEYOND THE LIMIT

O LIGHT! MY LIGHT

YOU GIVE WARMNESS TO A NUDE

POOR PEOPLE IN COLD

YOU TOO MAKE GREEN LEAVES

ROUGH AND DRY.

HOW A GOOD CARETAKER

AND DESTRUCTIVE YOU ARE

O LIGHT! MY LIGHT

CARRY ON MY LIGHT PLEASE

AS YOU WERE IN ORIGIN OF WORLD

AS YOU WILL IN THE END OF WORLD



( SHAILENDRA RISHI )

सोमवार, सितंबर 20, 2010

भटकाव

पराभव से उठने की अल्प कोशिश ,

न्यूनता ग्रहण कर जाती चंद क्षणों में

मैं उठूँगा , बढूँगा , पीछे मुड़कर नहीं देखूंगा

पर इस बार फिर लक्ष्य वो नहीं

जो कुछ देर पहले तय हुए

रौशनी पड़ती रहेगी उसी तरफ से उसी जगह

पर इस बार भी आत्मसात  किये गहरी छाया .




शैलेन्द्र ऋषि